व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> संकट सफलता की नींव है संकट सफलता की नींव हैविली जॉली
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जिस मिनट आप निर्णय लेते हैं और काम करना शुरू करते हैं... उसी मिनट आप अपनी ज़िंदगी बदल लेते हैं।...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
जिस मिनट आप निर्णय लेते हैं और काम करना शुरू करते हैं... उसी मिनट आप अपनी ज़िंदगी बदल लेते हैं।
विली जॉली
शुरुआती बिंदु
1989 में शनिवार की सुहानी रात को मैं न्यूज़रूम कैफ़े में अपना कार्यक्रम पेश करने जा रहा था। वहाँ मैं मुख्य आकर्षण था। मैं बहुत ख़ुश था। हाल ही में मुझे सर्वश्रेष्ठ जैज़ गायक के रूप में अपना तीसरा वैमी पुरस्कार मिला था (वॉशिंगटन, डी.सी. का यह पुरस्कार ग्रैमी की तरह ही है) और मैं जानता था कि उस रात होने वाले दोनों शो हाउसफ़ुल थे। उस रात दर्शकों के दोनों समूहों के सामने मेरे कार्यक्रम शानदार रहे। कार्यक्रम ख़त्म होने के बाद मुझे एक संदेश मिला कि क्लब के मालिक मुझसे मिलना चाहते हैं। मैं यह सुनकर रोमांचित हो गया।
मैंने मालिक से मिलने में देर नहीं की। उस रात मेरे दोनों कार्यक्रम बहुत बढ़िया थे, इसलिए मैंने सोचा कि मेरी तनख़्वाह और मेरे अनुबंध की अवधि बढ़ने वाली है। जब मैं क्लब के मालिक से मिला, तो उन्होंने कहा, ‘‘आज रात का तुम्हारा कार्यक्रम लाजवाब रहा। लोगों ने तुम्हें ख़ूब पसंद किया। इन दिनों तुम बहुत अच्छे कार्यक्रम दे रहे हो। तुम्हें सर्वश्रेष्ठ जैज़ गायक और सर्वश्रेष्ठ संगीत प्रस्तुति के पुरस्कार भी हाल ही में मिले हैं। तुमने वह हर काम किया है जो हम चाहते हैं, इसलिए मैं जो कहने जा रहा हूँ वह कहना बहुत मुश्किल है। हमने एक परिवर्तन करने का फ़ैसला किया है ! हम तुम्हें और तुम्हारे बैंड को पसंद करते हैं, परंतु हमने लागत में कमी करने का निर्णय लिया है, यानी कि कर्मचारियों को संख्या कम करनी होगी, यानी कि छँटनी करनी होगी, यानी कि कंपनी को सही आकार में लाना होगा।’’ (आप इसे जो चाहे कहें, परंतु इसका मतलब एक ही था... आपको नौकरी से निकाला जा रहा है।)
‘‘इसलिए हमने यह फै़सला किया है कि दूसरे क्लबों में आजकल जो चीज़ लोकप्रिय हो रही है, उसे आज़माकर देखा जाए। इसे कराओके मशीन कहा जाता है ! हम एक महीने तक इसे आज़माना चाहते हैं।’’
‘‘एक महीने तक ?’’ मैंने पूछा। ‘‘और मेरा ख़र्च कैसे चलेगा ?’’
(मैंने उस रात यह सीखा कि आपके ख़र्च के बारे में आपके और आपको कर्ज़ देने वालों के सिवाय किसी को परवाह नहीं होती !)
मैं सदमे में था। मैं आहत था। मैं दुखी था। मैं ध्वस्त हो चुका था ! मुझे इस बात पर यक़ीन ही नहीं हो रहा था। लोगों को इस क्लब से जोड़ने के लिए मैंने कड़ी मेहनत की थी और उसके बदले में मुझे यह पुरस्कार मिला कि मुझे नौकरी से निकालकर एक कराओके मशीन लाई जा रही थी ! मैंने सुना था कि लोगों को नौकरी से निकाला जा रहा है, परंतु मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि ऐसा मेरे साथ होगा। यह एक संकट (setback) था, बहुत बड़ा संकट ! परंतु इसके साथ ही यह एक अद्भत सफलता (comeback) की शुरुआत भी थी। इस संकट के बाद मिलने वाली सफलता ने मुझे सिखाया कि संकट दरअसल और कुछ नहीं, बल्कि सफलता की नींव होते हैं।
मैंने मालिक से मिलने में देर नहीं की। उस रात मेरे दोनों कार्यक्रम बहुत बढ़िया थे, इसलिए मैंने सोचा कि मेरी तनख़्वाह और मेरे अनुबंध की अवधि बढ़ने वाली है। जब मैं क्लब के मालिक से मिला, तो उन्होंने कहा, ‘‘आज रात का तुम्हारा कार्यक्रम लाजवाब रहा। लोगों ने तुम्हें ख़ूब पसंद किया। इन दिनों तुम बहुत अच्छे कार्यक्रम दे रहे हो। तुम्हें सर्वश्रेष्ठ जैज़ गायक और सर्वश्रेष्ठ संगीत प्रस्तुति के पुरस्कार भी हाल ही में मिले हैं। तुमने वह हर काम किया है जो हम चाहते हैं, इसलिए मैं जो कहने जा रहा हूँ वह कहना बहुत मुश्किल है। हमने एक परिवर्तन करने का फ़ैसला किया है ! हम तुम्हें और तुम्हारे बैंड को पसंद करते हैं, परंतु हमने लागत में कमी करने का निर्णय लिया है, यानी कि कर्मचारियों को संख्या कम करनी होगी, यानी कि छँटनी करनी होगी, यानी कि कंपनी को सही आकार में लाना होगा।’’ (आप इसे जो चाहे कहें, परंतु इसका मतलब एक ही था... आपको नौकरी से निकाला जा रहा है।)
‘‘इसलिए हमने यह फै़सला किया है कि दूसरे क्लबों में आजकल जो चीज़ लोकप्रिय हो रही है, उसे आज़माकर देखा जाए। इसे कराओके मशीन कहा जाता है ! हम एक महीने तक इसे आज़माना चाहते हैं।’’
‘‘एक महीने तक ?’’ मैंने पूछा। ‘‘और मेरा ख़र्च कैसे चलेगा ?’’
(मैंने उस रात यह सीखा कि आपके ख़र्च के बारे में आपके और आपको कर्ज़ देने वालों के सिवाय किसी को परवाह नहीं होती !)
मैं सदमे में था। मैं आहत था। मैं दुखी था। मैं ध्वस्त हो चुका था ! मुझे इस बात पर यक़ीन ही नहीं हो रहा था। लोगों को इस क्लब से जोड़ने के लिए मैंने कड़ी मेहनत की थी और उसके बदले में मुझे यह पुरस्कार मिला कि मुझे नौकरी से निकालकर एक कराओके मशीन लाई जा रही थी ! मैंने सुना था कि लोगों को नौकरी से निकाला जा रहा है, परंतु मैंने यह कभी नहीं सोचा था कि ऐसा मेरे साथ होगा। यह एक संकट (setback) था, बहुत बड़ा संकट ! परंतु इसके साथ ही यह एक अद्भत सफलता (comeback) की शुरुआत भी थी। इस संकट के बाद मिलने वाली सफलता ने मुझे सिखाया कि संकट दरअसल और कुछ नहीं, बल्कि सफलता की नींव होते हैं।
निर्णायक मोड़
उसी पल से मैंने अपनी ज़िंदगी बदलना शुरू कर दी। मैंने घर जाकर पत्नी को बताया कि मैं अब इस बात से तंग आ गया था कि कोई दूसरा मुझे बताए कि क्या गाना है, क्या नहीं गाना है; कब गाना है और कब नहीं गाना है। मैं अब इस बात से तंग आ गया था कि कोई दूसरा मेरी क़िस्मत को नियंत्रित करे। अब सही समय आ चुका था। मैं अपनी ज़िंदगी बदलने जा रहा था।
मैंने फ़ोन करके अपने बैंड के सदस्यों को यह बात बता दी। मैंने उन्हें यह भी बताया कि मैंने दूसरी दिशा चुनने का फ़ैसला कर लिया था। उन्होंने मुझे शुभकामनाएँ दीं, परंतु मुझे शुभकामनाओं से नहीं ख़ुद से ज़्यादा उम्मीदें थीं ! मुझे यह तो ठीक-ठीक पता नहीं था कि मैं क्या करने वाला हूँ, परंतु मुझे पूरा विश्वास था कि मैं अपनी ज़िंदगी बदलने वाला हूँ और मैं यह भी जानता था कि इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका क़िस्मत की नहीं, बल्कि मेरी होगी !
मैंने पढ़ा था, ‘‘ख़ुशक़िस्मती की सच्ची परिभाषा यह है कि तैयारी का अवसर से मिलने हो जाए।’’ और यह भी कि ‘‘अगर आपके पास अवसर न हो, तो बना लें।’’ मैं गायक की तरह सोचते-सोचते, हमेशा ‘‘बड़े अवसर का इंतज़ार करते-करते’’, किसी पारखी द्वारा मेरी प्रतिभा को पहचानकर मुझे स्टार बनाने का इंतज़ार करते-करते थक चुका था। मैंने फ़ैसला किया कि मैं अपनी सोच को बदल दूँगा, अपने कामों को बदल दूँगा और अपने परिणामों को बदल दूँगा। अब मैं ‘‘बड़े अवसरों का इंतज़ार नहीं करूँगा,’’ बल्कि ‘‘बड़े अवसर ख़ुद बनाऊँगा।’’
मुझे लूसिल बॉल का वह कथन याद था, जो ख़ुशक़िस्मती के बारे में था। कैरियर की शुरुआत में ही उन्हें संकट का सामना करना पड़ा था, जब उन्हें एक फ़िल्म स्टूडियो ने निकाल दिया था। स्टूडियो एक्ज़ीक्यूटिव ने उन्हें इसलिए नहीं रखा, क्योंकि उसके हिसाब से लूसी में अभिनय प्रतिभा नहीं थी। उस संकट के बाद लूसी और उसके पति ने कुछ पूँजी उधार लेकर ख़ुद का शो तैयार किया। इसका नाम रखा गया आई लव लूसी। यह शो ज़बर्दस्त हिट हुआ ! दरअसल यह उस साल, अगले साल, उसके भी अगले साल, सालोसाल नंबर वन टेलीविज़न शो रहा। आई लव लूसी शो दुनिया के सबसे बड़े सिंडिकेटेड शोज़ में से एक है और लुसिल बॉल महान कॉमेडी अभिनेत्री बन चुकी हैं। ख़ुशक़िस्मती के बारे में उनका प्रसिद्ध कथन है, ‘‘मैंने इस बात को सच पाया है कि मैं जितनी कड़ी मेहनत करती हूँ, मैं उतनी ही ज़्यादा ख़ुशक़िस्मत बन जाती हूँ।’’ मैं इस बात से पूरी तरह सहमत था।
मैंने बड़े अवसरों का इंतज़ार करने के बजाय अपने अवसर ख़ुद बनाने के इस नए सिद्धांत को पूरी तरह आत्मसात कर लिया। इसके बाद मैं जूनियर कॉलेज में परामर्शदाता की नौकरी करने लगा। मेरा काम यह था कि मैं कॉलेज में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे विद्यार्थियों से बातचीत करके उन्हें पढ़ाई पूरी करने के लिए राज़ी कर लूँ। वहाँ पर मैंने प्रेरणा की शक्ति के बारे में सीखना शुरू किया। सेमिस्टर ख़त्म होने पर मैंने वॉशिंगटन डी.सी., पब्लिक स्कूल्स में मद्य निषेध समन्वयक की नौकरी कर ली। यहाँ पर मेरा काम यह था कि मैं बच्चों को शराब और मादक पदार्थों से दूर रहने के लिए प्रेरित करूँ। मैंने बोलना शुरू किया और यह पाया कि मेरे भाषणों से लोगों को सचमुच प्रेरणा मिलती है।
स्कूलों में बच्चों के सामने मेरे प्रेरणादायक भाषण सुनकर शिक्षक और प्राचार्य मुझे अपने एसोसिएशन की मीटिंगों में भाषण देने के लिए बुलाने लगे। उन मीटिंगों के बाद मुझे दूसरी सभाओं में बोलने के आमंत्रण मिले। इन आमंत्रणों के बाद मुझे चर्च में भाषण देने के आमंत्रण मिले। चर्च में बड़ी कंपनियों में काम करने वाले लोगों ने मेरे भाषण सुने। उन्होंने मुझे अपनी कंपनियों में भाषण देने के लिए आमंत्रित किया। उन कंपनियों के लोगों ने दूसरी कंपनियों के अपने मित्रों को मेरे बारे में बताया और यह सिलसिला चल पड़ा।
कुछ समय बाद प्रेरणापुंज लेस ब्राउन ने मुझे वॉशिंगटन, डी.सी. में भाषण देते और गीत की प्रस्तुति देते हुए देखा। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं उनके नए टूर में उनके साथ चल सकता हूँ, जो वे ग्लेडिस नाइट के साथ करने वाले थे। इस टूर का नाम ‘‘मोटिवेशन एंड म्यूज़िक टूर’’ था। उन्हें यह बात पसंद आई कि मैं प्रेरणा भी देता था और गीत भी गाता था। उन्होंने महसूस किया कि मैं उनके बहुत काम आ सकता हूँ। मैं लेस और ग्लेडिस के साथ टूर पर गया तथा इसके बाद मेरी राह में और अवसर आए। सार्वजनिक संभाषण से मुझे रेडियो और टेलीविज़न पर कार्यक्रम देने का मौक़ा मिला। फिर पुस्तकें और रिकॉर्ड आए। और फिर दूसरे टूर और संगीत कार्यक्रमों का अवसर मिला।
ज़रा सोचिए... अगर मुझे नौकरी से नहीं निकाला गया होता और मेरी जगह पर कराओके मशीन नहीं लाई गई होती, तो मैं अब भी किसी छोटे नाइट क्लब में गा रहा होता। दरअसल, कई बार तो मेरी इच्छा होती है कि मैं जाकर उस आदमी को गले लगा लूँ, जिसने मुझे नौकरी से निकाला था। उसने यह सीखने में मेरी मदद की थी कि संकट और कुछ नहीं, बल्कि सफलता की नींव है !
मैंने फ़ोन करके अपने बैंड के सदस्यों को यह बात बता दी। मैंने उन्हें यह भी बताया कि मैंने दूसरी दिशा चुनने का फ़ैसला कर लिया था। उन्होंने मुझे शुभकामनाएँ दीं, परंतु मुझे शुभकामनाओं से नहीं ख़ुद से ज़्यादा उम्मीदें थीं ! मुझे यह तो ठीक-ठीक पता नहीं था कि मैं क्या करने वाला हूँ, परंतु मुझे पूरा विश्वास था कि मैं अपनी ज़िंदगी बदलने वाला हूँ और मैं यह भी जानता था कि इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका क़िस्मत की नहीं, बल्कि मेरी होगी !
मैंने पढ़ा था, ‘‘ख़ुशक़िस्मती की सच्ची परिभाषा यह है कि तैयारी का अवसर से मिलने हो जाए।’’ और यह भी कि ‘‘अगर आपके पास अवसर न हो, तो बना लें।’’ मैं गायक की तरह सोचते-सोचते, हमेशा ‘‘बड़े अवसर का इंतज़ार करते-करते’’, किसी पारखी द्वारा मेरी प्रतिभा को पहचानकर मुझे स्टार बनाने का इंतज़ार करते-करते थक चुका था। मैंने फ़ैसला किया कि मैं अपनी सोच को बदल दूँगा, अपने कामों को बदल दूँगा और अपने परिणामों को बदल दूँगा। अब मैं ‘‘बड़े अवसरों का इंतज़ार नहीं करूँगा,’’ बल्कि ‘‘बड़े अवसर ख़ुद बनाऊँगा।’’
मुझे लूसिल बॉल का वह कथन याद था, जो ख़ुशक़िस्मती के बारे में था। कैरियर की शुरुआत में ही उन्हें संकट का सामना करना पड़ा था, जब उन्हें एक फ़िल्म स्टूडियो ने निकाल दिया था। स्टूडियो एक्ज़ीक्यूटिव ने उन्हें इसलिए नहीं रखा, क्योंकि उसके हिसाब से लूसी में अभिनय प्रतिभा नहीं थी। उस संकट के बाद लूसी और उसके पति ने कुछ पूँजी उधार लेकर ख़ुद का शो तैयार किया। इसका नाम रखा गया आई लव लूसी। यह शो ज़बर्दस्त हिट हुआ ! दरअसल यह उस साल, अगले साल, उसके भी अगले साल, सालोसाल नंबर वन टेलीविज़न शो रहा। आई लव लूसी शो दुनिया के सबसे बड़े सिंडिकेटेड शोज़ में से एक है और लुसिल बॉल महान कॉमेडी अभिनेत्री बन चुकी हैं। ख़ुशक़िस्मती के बारे में उनका प्रसिद्ध कथन है, ‘‘मैंने इस बात को सच पाया है कि मैं जितनी कड़ी मेहनत करती हूँ, मैं उतनी ही ज़्यादा ख़ुशक़िस्मत बन जाती हूँ।’’ मैं इस बात से पूरी तरह सहमत था।
मैंने बड़े अवसरों का इंतज़ार करने के बजाय अपने अवसर ख़ुद बनाने के इस नए सिद्धांत को पूरी तरह आत्मसात कर लिया। इसके बाद मैं जूनियर कॉलेज में परामर्शदाता की नौकरी करने लगा। मेरा काम यह था कि मैं कॉलेज में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे विद्यार्थियों से बातचीत करके उन्हें पढ़ाई पूरी करने के लिए राज़ी कर लूँ। वहाँ पर मैंने प्रेरणा की शक्ति के बारे में सीखना शुरू किया। सेमिस्टर ख़त्म होने पर मैंने वॉशिंगटन डी.सी., पब्लिक स्कूल्स में मद्य निषेध समन्वयक की नौकरी कर ली। यहाँ पर मेरा काम यह था कि मैं बच्चों को शराब और मादक पदार्थों से दूर रहने के लिए प्रेरित करूँ। मैंने बोलना शुरू किया और यह पाया कि मेरे भाषणों से लोगों को सचमुच प्रेरणा मिलती है।
स्कूलों में बच्चों के सामने मेरे प्रेरणादायक भाषण सुनकर शिक्षक और प्राचार्य मुझे अपने एसोसिएशन की मीटिंगों में भाषण देने के लिए बुलाने लगे। उन मीटिंगों के बाद मुझे दूसरी सभाओं में बोलने के आमंत्रण मिले। इन आमंत्रणों के बाद मुझे चर्च में भाषण देने के आमंत्रण मिले। चर्च में बड़ी कंपनियों में काम करने वाले लोगों ने मेरे भाषण सुने। उन्होंने मुझे अपनी कंपनियों में भाषण देने के लिए आमंत्रित किया। उन कंपनियों के लोगों ने दूसरी कंपनियों के अपने मित्रों को मेरे बारे में बताया और यह सिलसिला चल पड़ा।
कुछ समय बाद प्रेरणापुंज लेस ब्राउन ने मुझे वॉशिंगटन, डी.सी. में भाषण देते और गीत की प्रस्तुति देते हुए देखा। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं उनके नए टूर में उनके साथ चल सकता हूँ, जो वे ग्लेडिस नाइट के साथ करने वाले थे। इस टूर का नाम ‘‘मोटिवेशन एंड म्यूज़िक टूर’’ था। उन्हें यह बात पसंद आई कि मैं प्रेरणा भी देता था और गीत भी गाता था। उन्होंने महसूस किया कि मैं उनके बहुत काम आ सकता हूँ। मैं लेस और ग्लेडिस के साथ टूर पर गया तथा इसके बाद मेरी राह में और अवसर आए। सार्वजनिक संभाषण से मुझे रेडियो और टेलीविज़न पर कार्यक्रम देने का मौक़ा मिला। फिर पुस्तकें और रिकॉर्ड आए। और फिर दूसरे टूर और संगीत कार्यक्रमों का अवसर मिला।
ज़रा सोचिए... अगर मुझे नौकरी से नहीं निकाला गया होता और मेरी जगह पर कराओके मशीन नहीं लाई गई होती, तो मैं अब भी किसी छोटे नाइट क्लब में गा रहा होता। दरअसल, कई बार तो मेरी इच्छा होती है कि मैं जाकर उस आदमी को गले लगा लूँ, जिसने मुझे नौकरी से निकाला था। उसने यह सीखने में मेरी मदद की थी कि संकट और कुछ नहीं, बल्कि सफलता की नींव है !
संकट
क्या आपके जीवन में कभी संकट आया है ? क्या आपके सामने कभी ऐसी समस्या आई है, जिसने आपको पूरी तरह झकझोर दिया हो ? क्या आपको कभी मुश्किल स्थिति का सामना करना पड़ा है ? क्या आप कभी निराश हुए हैं ? क्या आप कभी बुरी तरह दुखी हुए हैं ? क्या आपने ऐसा कोई व्यक्ति या वस्तु खो दी है, जिससे आप अब तक नहीं उबर पाए हों ? क्या आप कभी ऐसी मुसीबत में थे, जब आपके पैरों तले कालीन खींच दिया गया था और आपको यह नहीं सूझ रहा था कि क्या किया जाए ? अगर इनमें से किसी भी सवाल का जवाब हाँ में है, तो यह पुस्तक आपके काम की हो सकती है।
यह पुस्तक बताती है कि आप अपने संकटों को सफलताओं में कैसे बदल सकते हैं, आप विरोध और विपत्ति के बावज़ूद कैसे जीत सकते हैं। यह पुस्तक बताती है कि आप जीवन के नीबुओं को नीबू के शर्बत में कैसे बदल सकते हैं, अपने घावों को सितारों में कैसे बदल सकते हैं और अपने दर्द को अपनी शक्ति में कैसे बदल सकते हैं।
क्या आपको कभी हैरानी हुई है कि कुछ लोग दस लाख डॉलर कमा लेते हैं, फिर उन्हें गँवा देते हैं, दोबारा दस लाख कमाते हैं, उसे भी गँवा देते हैं, फिर तिबारा दस लाख कमा लेते हैं, जबकि बाक़ी लोगों से अपना मासिक ख़र्च भी ठीक से नहीं चल पाता है ? ऐसा क्यों हैं कि कुछ लोग जिस भी चीज़ को छूते हैं, वह सोना बन जाती है ?
यह पुस्तक बताती है कि आप अपने संकटों को सफलताओं में कैसे बदल सकते हैं, आप विरोध और विपत्ति के बावज़ूद कैसे जीत सकते हैं। यह पुस्तक बताती है कि आप जीवन के नीबुओं को नीबू के शर्बत में कैसे बदल सकते हैं, अपने घावों को सितारों में कैसे बदल सकते हैं और अपने दर्द को अपनी शक्ति में कैसे बदल सकते हैं।
क्या आपको कभी हैरानी हुई है कि कुछ लोग दस लाख डॉलर कमा लेते हैं, फिर उन्हें गँवा देते हैं, दोबारा दस लाख कमाते हैं, उसे भी गँवा देते हैं, फिर तिबारा दस लाख कमा लेते हैं, जबकि बाक़ी लोगों से अपना मासिक ख़र्च भी ठीक से नहीं चल पाता है ? ऐसा क्यों हैं कि कुछ लोग जिस भी चीज़ को छूते हैं, वह सोना बन जाती है ?
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